
बाड़मेर लोकसभा चुनाव की हॉट सीटों में से एक है। यहां पहली बार लोकसभा चुनावों में हाथ आजमा रहे रविंद्र सिंह भाटी के सामने भाजपा के कैलाश चौधरी और RLP से कांग्रेस में आए उम्मेदाराम बेनीवाल हैं।
भाटी तीसरी बार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। रविंद्र अब तक जो भी निर्दलीय लड़े हैं, जीते हैं। पहला JNVU से प्रेसिडेंट का चुनाव, दूसरा शिव सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते। तीसरे यानी लोकसभा के चुनाव का परिणाम अभी भविष्य के गर्भ में है।
इस बीच लगातार भाटी से समझौते की कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन वे मैदान में डटे हुए हैं। भास्कर ने जाना कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि शिव से विधायक बनने के बाद भाटी को लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उतरना पड़ा। भास्कर ने पड़ताल की तो दो कारण निकल कर सामने आए। इन्हीं दो कारणों से तमाम मान-मनुहार के बावजूद भाटी मैदान से हटने को तैयार नहीं हैं।
राज्य सरकार से आया एक आदेश
उसी आदेश को लेकर भाटी समर्थकों की नाराजगी
रविंद्र सिंह भाटी आगामी 4 अप्रैल को बाड़मेर लोकसभा सीट से अपना नामांकन दाखिल करेंगे।
रविंद्र सिंह भाटी आगामी 4 अप्रैल को बाड़मेर लोकसभा सीट से अपना नामांकन दाखिल करेंगे।
पढ़िए क्या था आदेश, जिसके बाद लिया लोकसभा लड़ने का फैसला
रविंद्र सिंह भाटी ने भाजपा का दामन थामने के बाद ही बगावत कर दी थी। वजह थी शिव सीट से टिकट नहीं मिलना। उनकी जगह RSS की पृष्ठभूमि से आने वाले स्वरूप सिंह खारा को टिकट दिया गया था। इससे नाराज होकर भाटी ने विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ ताल ठोंक दी और 79,450 वोट हासिल कर विधायक बने।
भाटी के विधायक बनने के बाद अंदरखाने चर्चा थी कि वे एक बार फिर भाजपा के साथ होने की जुगत में हैं। पर मामला कुछ दूसरा ही है। विधायक होने के बावजूद उनके छोटे-छोटे काम अटक रहे थे। 3 माह तक भाटी के क्षेत्र में एक भी काम नहीं हुआ था। सरकार विधायक को तवज्जो देने की बजाय हारे हुए बीजेपी प्रत्याशी को प्राथमिकता दे रही थी।
PHED का वह आदेश, जिसके बाद रविंद्र सिंह भाटी के समर्थकों में गुस्सा था। उनका कहना था- ये पक्षपात की राजनीति है।
PHED का वह आदेश, जिसके बाद रविंद्र सिंह भाटी के समर्थकों में गुस्सा था। उनका कहना था- ये पक्षपात की राजनीति है।
14 मार्च को जारी हुए एक सरकारी आदेश ने भाटी के चुनाव लड़ने की रूपरेखा तैयार कर दी। इस आदेश में स्वरूप सिंह खारा की डिजायर पर 20 हैंडपंप की स्वीकृति दी और विधायक भाटी की डिजायर पर सिर्फ दो हैंडपंप स्वीकृत हुए।
इसमें शिव विधानसभा को लेकर आगे विधायक और भाजपा प्रत्याशी का नाम भी लिखा गया है। इसमें साफ लिखा है कि स्वरूप सिंह खारा की डिजायर पर 20 और विधायक भाटी की डिजायर पर 2 हैंडपंप स्वीकृत किए गए।
सोशल मीडिया पर रविंद्र सिंह भाटी के वीडियो चर्चा में हैं। उनके समर्थक कभी JCB से फूल बरसाते हैं तो कभी उन्हें फलों से तौल रहे हैं।
सोशल मीडिया पर रविंद्र सिंह भाटी के वीडियो चर्चा में हैं। उनके समर्थक कभी JCB से फूल बरसाते हैं तो कभी उन्हें फलों से तौल रहे हैं।
भाटी का निर्दलीय लड़ने का इतिहास
2019 में जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी (JNVU) से भाटी ने ABVP से चुनाव लड़ने का मन बनाया था। लेकिन अंतिम समय में उन्हें टिकट नहीं मिला। रविंद्र ने निर्दलीय ताल ठोंक दी और 290 वोटों से जीते।
इसके बाद 2023 में विधानसभा चुनाव से पहले रविंद्र सिंह भाटी ने भाजपा जॉइन की थी। उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें टिकट देगी। पार्टी ने टिकट RSS के करीबी और बाड़मेर भाजपा जिला अध्यक्ष स्वरूप सिंह खारा को दिया। रविंद्र फिर निर्दलीय खड़े हो गए। रविंद्र ने सभी को पछाडते हुए 3,950 वोट से चुनाव जीता।
विधानसभा चुनाव में शिव सीट से जीतने के बाद रविंद्र सिंह भाटी मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मिलने पहुंचे थे। कयास लगाए जा रहे थे कि उनकी भाजपा में वापसी होगी।
विधानसभा चुनाव में शिव सीट से जीतने के बाद रविंद्र सिंह भाटी मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मिलने पहुंचे थे। कयास लगाए जा रहे थे कि उनकी भाजपा में वापसी होगी।
बयानबाजी से बचते हैं
रविंद्र सार्वजनिक मंच या निजी रूप से कभी किसी पार्टी या व्यक्ति पर बयानबाजी से बचते हैं।
हाल ही में बायतू विधायक हरीश चौधरी ने बिना नाम लिए रविंद्र को दिखावे का नेता बता दिया था। उन्होंने ड्रोन और भीड़ को अहंकार का चुनाव बताया था। वहीं कांग्रेस के पूर्व मंत्री हेमाराम चौधरी ने भी जब जैन समाज और राजपूत समाज से अपने बयान को लेकर माफी मांगी तो रविंद्र ने इस पर भी बयानबाजी नहीं की। उन्होंने कहा- हेमाराम जी मेरे सम्मानीय हैं और मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है।
नामांकन के बाद रविंद्र ने मीडिया से कहा था- अब चर्चाओं और वार्ताओं का दौर खत्म हो गया है। अब चुनावी रण में कबड्डी खेलने का समय है।
लोकसभा चुनाव में भी रविंद्र ने निर्दलीय लड़ने का फैसला लिया है। हालांकि, अंदरखाने चर्चा है कि भाजपा रविंद्र को मनाने में कामयाब हो जाएगी।
लोकसभा चुनाव में भी रविंद्र ने निर्दलीय लड़ने का फैसला लिया है। हालांकि, अंदरखाने चर्चा है कि भाजपा रविंद्र को मनाने में कामयाब हो जाएगी।
जातीय समीकरण भी एक फैक्टर
भाटी के चुनाव लड़ने के पीछे जातिगत समीकरण भी कहीं ना कहीं एक बड़ी वजह रही है। बीजेपी-कांग्रेस दोनों ने एक ही जाति से प्रत्याशी उतारे हैं। इस सीट पर कांग्रेस-बीजेपी दोनों दलों से राजपूत समाज को प्रतिनिधित्व मिलता रहा है। इस बार दोनों पार्टियों से जाट कैंडिडेट मैदान में हैं